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रामायण की कहानियों का चौथा अध्याय । चौथे अध्याय मे

रामायण की कहानियों का चौथा अध्याय ।
चौथे अध्याय में भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी के साथ वन में चले जाते हैं और वहां पहुंच कर एक कुटिया का निर्माण करते हैं और उसमें ही रहने लगते हैं कुछ ही दिन बीते थे कि एक बार आकाश मार्ग से एक राक्षसी जा रही थी जिसका नाम सुपृनखा था वह श्री राम को देखकर लुभा जाती है और श्री राम जी के पास आकर कहती है है युवक तुम कौन हो कहां से आए हो मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं तब श्री राम जी ने कहा हे देवी मैं दशरथ पुत्र राम हूं और मेरा विवाह हो चुका है यह मेरी पत्नी सीता है और मैं अपने भाई लक्ष्मण के साथ यहां पर रहता हूं तभी उसकी नजर लक्ष्मण जी पर पड़ती है और श्री राम से कहती है कि ठीक है अगर तुम विवाहित हो तो मैं तुम्हारे भाई लक्ष्मण से विवाह करूंगी इस बात पर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मैं तो भैया और भाभी का दास हूं आप मेरा विचार छोड़ दें और यहां से चले जाएं इस पर सूर्पनखा क्रोधित हो जाती है और कहती है की तुम दोनों इस स्त्री के कारण मुझे ठुकरा रहे हो तो मैं इस स्त्री को ही मार डालूंगी इस पर लक्ष्मण जी को क्रोध आ जाता है और वह सुपृनखा की नाक काट देते हैं जिस पर लज्जित हो वह अपने भाई खर-दूषण के पास जाती हैं और पर न्याय की गुहार लगाती है यह सब बात सुनकर खर- दूषण श्री राम लक्ष्मण से युद्ध करने आ जाते हैं और बुरी तरह से परास्त हो जाते हैं इसके बाद वह अपने भाई रावण के लंका के महल में जाती हैं और रावण से गुहार लगाती है इस बात रावण कहता है हे बहना जिसने तुम्हारी नाक काटी है और हमारे कुल को लज्जित किया है मैं उसे भी उसी तरह से लज्जित करूंगा और फिर अपने मामा मारीच के पास जाता है जो की रूप बदलने में बहुत ही माहिर था और बहुत ही मायावी भी था उसने एक सोने की हिरण का रूप धारण कर लिया और जहां पर श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी सहित रहते थे वह  उस वन में चला गया तभी मां सीता का ध्यान उस सोने के हिरन पर पड़ा और वह मोहित हो गई है और श्री राम जी से कहने लगी कि हे प्राणनाथ मुझे वह हिरण चाहिए इस पर श्री राम जी कहते हैं कि ठीक है सीता मैं अभी ही जाता हूं और इस हिरण को ले आता हूं और लक्ष्मण जी से कहते हैं कि भाई लक्ष्मण तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना जब तक मैं ना आऊं तुम यहां से मत हिलना इस पर लक्ष्मण जी कहते हैं भैया यह कोई राक्षसी माया तो नहीं इस बात पर श्री राम जी कहते हैं अगर वह राक्षस होगा उसकी मौत निश्चित है बस तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना और वह उस सोने की हिरण के पीछे चले जाते हैं तभी एक आवाज आती है है लक्ष्मण है सीते यह आवाज सुनकर मां सीता व्याकुल हो जाती है और लक्ष्मण जी से कहती है लक्ष्मण क्या तुमने ये आवाज सुनी तुम्हारे भैया लगता है किसी खतरे में हैं तुम अभी जाओ और अपनी भैया की रक्षा करो तभी लक्ष्मण जी कहते हैं नहीं भाभी ऐसा नहीं हो सकता मैं नहीं जा सकता मैं अपनी भैया की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता तभी मां सीता जोर देकर कहती है की तुम अपना जान बचाना चाहते हो तुम कायर हो बस झूठ में ही तुम अपनी भैया के सामने वीरता की दींगे हांकते रहते हो यह सब सुनकर लक्ष्मण जी को सहन नहीं होता है और वह कुटिया के आसपास एक लंबी रेखा खींच कर कहते हैं भाभी आप इस रेखा के भीतर ही रहना जब तक मैं या भैया वापस ना जाए आप इस रेखा से बाहर मत आना यह कहकर लक्ष्मण जी वहां से चले जाते हैं इधर रावण इसी ताक में था कि कब लक्ष्मण वहां से जाएं और मैं सीता का हरण करूं जैसे ही लक्ष्मण वहां से चले जाते हैं तब रावण एक साधु का भेष बनाकर कुटिया में आता है और भिक्षा की मांग करता है मां सीता कुटिया में से साधु की आवाज सुनती है तो भिक्षा लेकर बाहर आती हैं साधु रूपी भेष धारण किए हुए रावण कहता है कि हे देवी अगर तुम्हें भिक्षा देना है तो तुम्हें इस रेखा के बाहर आकर देना होगा क्योंकि वह जानता था कि अगर वह इस रेखा के भीतर जाएगा तो जलकर भस्म हो जाएगा इसलिए उसने मां सीता से जोर देकर कहा अगर तुम इस रेखा से बाहर आकर भिक्षा नहीं दोगी तो तुम्हारा संपूर्ण विनाश होगा और तुम्हारी पति की मृत्यु हो जाएगी यह बात सुनकर मां सीता डर जाती है और रेखा से बाहर आ जाती है जैसे ही मां सीता उस रेखा से बाहर आती है रावण अपने असली रूप में आ जाता है और मां सीता को उठाकर अपने पुष्पक विमान में हरण कर के ले जाता है...

©Anit kumar #NojotoRamleela#जय_सियाराम
रामायण की कहानियों का चौथा अध्याय ।
चौथे अध्याय में भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी के साथ वन में चले जाते हैं और वहां पहुंच कर एक कुटिया का निर्माण करते हैं और उसमें ही रहने लगते हैं कुछ ही दिन बीते थे कि एक बार आकाश मार्ग से एक राक्षसी जा रही थी जिसका नाम सुपृनखा था वह श्री राम को देखकर लुभा जाती है और श्री राम जी के पास आकर कहती है है युवक तुम कौन हो कहां से आए हो मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं तब श्री राम जी ने कहा हे देवी मैं दशरथ पुत्र राम हूं और मेरा विवाह हो चुका है यह मेरी पत्नी सीता है और मैं अपने भाई लक्ष्मण के साथ यहां पर रहता हूं तभी उसकी नजर लक्ष्मण जी पर पड़ती है और श्री राम से कहती है कि ठीक है अगर तुम विवाहित हो तो मैं तुम्हारे भाई लक्ष्मण से विवाह करूंगी इस बात पर लक्ष्मण जी कहते हैं कि मैं तो भैया और भाभी का दास हूं आप मेरा विचार छोड़ दें और यहां से चले जाएं इस पर सूर्पनखा क्रोधित हो जाती है और कहती है की तुम दोनों इस स्त्री के कारण मुझे ठुकरा रहे हो तो मैं इस स्त्री को ही मार डालूंगी इस पर लक्ष्मण जी को क्रोध आ जाता है और वह सुपृनखा की नाक काट देते हैं जिस पर लज्जित हो वह अपने भाई खर-दूषण के पास जाती हैं और पर न्याय की गुहार लगाती है यह सब बात सुनकर खर- दूषण श्री राम लक्ष्मण से युद्ध करने आ जाते हैं और बुरी तरह से परास्त हो जाते हैं इसके बाद वह अपने भाई रावण के लंका के महल में जाती हैं और रावण से गुहार लगाती है इस बात रावण कहता है हे बहना जिसने तुम्हारी नाक काटी है और हमारे कुल को लज्जित किया है मैं उसे भी उसी तरह से लज्जित करूंगा और फिर अपने मामा मारीच के पास जाता है जो की रूप बदलने में बहुत ही माहिर था और बहुत ही मायावी भी था उसने एक सोने की हिरण का रूप धारण कर लिया और जहां पर श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण जी सहित रहते थे वह  उस वन में चला गया तभी मां सीता का ध्यान उस सोने के हिरन पर पड़ा और वह मोहित हो गई है और श्री राम जी से कहने लगी कि हे प्राणनाथ मुझे वह हिरण चाहिए इस पर श्री राम जी कहते हैं कि ठीक है सीता मैं अभी ही जाता हूं और इस हिरण को ले आता हूं और लक्ष्मण जी से कहते हैं कि भाई लक्ष्मण तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना जब तक मैं ना आऊं तुम यहां से मत हिलना इस पर लक्ष्मण जी कहते हैं भैया यह कोई राक्षसी माया तो नहीं इस बात पर श्री राम जी कहते हैं अगर वह राक्षस होगा उसकी मौत निश्चित है बस तुम अपनी भाभी का ख्याल रखना और वह उस सोने की हिरण के पीछे चले जाते हैं तभी एक आवाज आती है है लक्ष्मण है सीते यह आवाज सुनकर मां सीता व्याकुल हो जाती है और लक्ष्मण जी से कहती है लक्ष्मण क्या तुमने ये आवाज सुनी तुम्हारे भैया लगता है किसी खतरे में हैं तुम अभी जाओ और अपनी भैया की रक्षा करो तभी लक्ष्मण जी कहते हैं नहीं भाभी ऐसा नहीं हो सकता मैं नहीं जा सकता मैं अपनी भैया की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता तभी मां सीता जोर देकर कहती है की तुम अपना जान बचाना चाहते हो तुम कायर हो बस झूठ में ही तुम अपनी भैया के सामने वीरता की दींगे हांकते रहते हो यह सब सुनकर लक्ष्मण जी को सहन नहीं होता है और वह कुटिया के आसपास एक लंबी रेखा खींच कर कहते हैं भाभी आप इस रेखा के भीतर ही रहना जब तक मैं या भैया वापस ना जाए आप इस रेखा से बाहर मत आना यह कहकर लक्ष्मण जी वहां से चले जाते हैं इधर रावण इसी ताक में था कि कब लक्ष्मण वहां से जाएं और मैं सीता का हरण करूं जैसे ही लक्ष्मण वहां से चले जाते हैं तब रावण एक साधु का भेष बनाकर कुटिया में आता है और भिक्षा की मांग करता है मां सीता कुटिया में से साधु की आवाज सुनती है तो भिक्षा लेकर बाहर आती हैं साधु रूपी भेष धारण किए हुए रावण कहता है कि हे देवी अगर तुम्हें भिक्षा देना है तो तुम्हें इस रेखा के बाहर आकर देना होगा क्योंकि वह जानता था कि अगर वह इस रेखा के भीतर जाएगा तो जलकर भस्म हो जाएगा इसलिए उसने मां सीता से जोर देकर कहा अगर तुम इस रेखा से बाहर आकर भिक्षा नहीं दोगी तो तुम्हारा संपूर्ण विनाश होगा और तुम्हारी पति की मृत्यु हो जाएगी यह बात सुनकर मां सीता डर जाती है और रेखा से बाहर आ जाती है जैसे ही मां सीता उस रेखा से बाहर आती है रावण अपने असली रूप में आ जाता है और मां सीता को उठाकर अपने पुष्पक विमान में हरण कर के ले जाता है...

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