आईना रोज़ संवरता कब है अक्स पानी पे ठहरता कब है हमसे कायम ये भरम है वरना चाँद धरती पे उतरता कब है न पड़े इश्क की नज़र जब तक हुस्न का रंग निखरता कब है #ripirphankhan#sad#IrrphanKhan