White गाँव के ओ गली, जवन छूट गइल, मन के कोना में, कहीं लुट गइल। पिआसल पनिहार, कुवा बोलावत, सपना के डेरा, कहीं टूट गइल। खलिहान के गाना, अब ना सुनाला, ओ बिसरे सुरवा, कहे छूट गइल। माटी के खुशबू, जियरा जुड़ावे, समय के संग-संग, कहीं रूठ गइल। अमराई के छांव, जियरा सहलावे, मगर उ बहार, अब तो रूठ गइल। चउपाल के बात, जे मन हरसावे, शहर के होड़ में, पीछे कहीं छूट गइल। बचपन के किस्सा, पकेला सहेजे, अधूरा सनेह, कहीं टूट गइल। राजीव ©samandar Speaks #good_night