दिपक यूँ कब तक जलाओगे छोड़ो बुझने दो अब जरूरत नही मेरी घरों को जगमगाती खूनी रौशनी को लगने दो बिना तेल-बाती मैं जलता तो नहीं बहुत उजाला भी करता तो नहीं फिर क्यों जलाते हो बुझाते हो कूड़ेदान में सुबह फेक आते हो अब रहने दो बस थोड़ा तुम भी तो जलो लोगों से नहीं लोगों के लिए ©Ramakant Jee Dipak #Diwali