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संत कबीर जी ने कहा था--- "कर ले श्रृंगार चतुर अलबे

 संत कबीर जी ने कहा था---
"कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली
साजन के घर जाना है,मिट्टी ओढावन,मिट्टी बिछावन,मिट्टी में मिल जाना है।। नहा ले धो ले,शीश गूंथा ले,फिर वहाँ से नहीं आना है,कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली,साजन के घर जाना है।।"
साजन, यहाँ मृत्यु को कहा गया है।कोई भी इंसान मृत्यु नहीं चाहता,पर मृत्यु आपके पीछे पीछे चलती है,ताउम्र।
गीता में कहा गया है--
'प्रयाणकाले मनसा चलेन'--
प्रयाणकाल में अचल मन से जाना चाहिए।
हमारी कोई चीज़ अगर कहीं छूट जाये तो मन व्याकुल रहता है। तो ये शरीर छोड़ते समय हम कितने व्याकुल होंगे। यह सृष्टि का नियम है कि जो आता है,वो जाता भी है। पर----कहाँ जायेंगे बस पता नहीं, और यही डर सताता है।हमने कभी वापिस जाने की तैयारी की ही नहीं होती।हम किसी से कितना भी स्नेह कर लें पर मृत्यु के बाद जुदाई होती ही है। यही परम सत्य है और विधि का विधान भी। कहते हैं ना---उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभाये--कोई न संग मरे। हम सबके रास्ते कर्मों के आधार पर अलग अलग होते हैं। हमारी गति हमारे कर्म ही तय करते हैं।
 संत कबीर जी ने कहा था---
"कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली
साजन के घर जाना है,मिट्टी ओढावन,मिट्टी बिछावन,मिट्टी में मिल जाना है।। नहा ले धो ले,शीश गूंथा ले,फिर वहाँ से नहीं आना है,कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली,साजन के घर जाना है।।"
साजन, यहाँ मृत्यु को कहा गया है।कोई भी इंसान मृत्यु नहीं चाहता,पर मृत्यु आपके पीछे पीछे चलती है,ताउम्र।
गीता में कहा गया है--
'प्रयाणकाले मनसा चलेन'--
प्रयाणकाल में अचल मन से जाना चाहिए।
हमारी कोई चीज़ अगर कहीं छूट जाये तो मन व्याकुल रहता है। तो ये शरीर छोड़ते समय हम कितने व्याकुल होंगे। यह सृष्टि का नियम है कि जो आता है,वो जाता भी है। पर----कहाँ जायेंगे बस पता नहीं, और यही डर सताता है।हमने कभी वापिस जाने की तैयारी की ही नहीं होती।हम किसी से कितना भी स्नेह कर लें पर मृत्यु के बाद जुदाई होती ही है। यही परम सत्य है और विधि का विधान भी। कहते हैं ना---उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभाये--कोई न संग मरे। हम सबके रास्ते कर्मों के आधार पर अलग अलग होते हैं। हमारी गति हमारे कर्म ही तय करते हैं।

संत कबीर जी ने कहा था--- "कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली साजन के घर जाना है,मिट्टी ओढावन,मिट्टी बिछावन,मिट्टी में मिल जाना है।। नहा ले धो ले,शीश गूंथा ले,फिर वहाँ से नहीं आना है,कर ले श्रृंगार चतुर अलबेली,साजन के घर जाना है।।" साजन, यहाँ मृत्यु को कहा गया है।कोई भी इंसान मृत्यु नहीं चाहता,पर मृत्यु आपके पीछे पीछे चलती है,ताउम्र। गीता में कहा गया है-- 'प्रयाणकाले मनसा चलेन'-- प्रयाणकाल में अचल मन से जाना चाहिए। हमारी कोई चीज़ अगर कहीं छूट जाये तो मन व्याकुल रहता है। तो ये शरीर छोड़ते समय हम कितने व्याकुल होंगे। यह सृष्टि का नियम है कि जो आता है,वो जाता भी है। पर----कहाँ जायेंगे बस पता नहीं, और यही डर सताता है।हमने कभी वापिस जाने की तैयारी की ही नहीं होती।हम किसी से कितना भी स्नेह कर लें पर मृत्यु के बाद जुदाई होती ही है। यही परम सत्य है और विधि का विधान भी। कहते हैं ना---उतना ही उपकार समझ कोई जितना साथ निभाये--कोई न संग मरे। हम सबके रास्ते कर्मों के आधार पर अलग अलग होते हैं। हमारी गति हमारे कर्म ही तय करते हैं।