"वो भी क्या दिन थे, हम आज के सुख-संसाधनों से भरे जीवन से कोसों दूर थे। कितना इंतजार रहता था न, किसी से मिलने का, उनसे मिलकर बैठ के बतियाने का। जब घर में लैंडलाइन फ़ोन आया, तो बड़े ही उत्साह से सभी को, फ़ोन की घंटी के बजने का इंतज़ार रहता। पहले कौन उठाएगा ??? इसका हर भाई बहिनों का आपस में मुकाबला रहता था। भला किसने कभी कोई भी नंबर दबाकर, फोन करने की कोशिश न की हो! आखिर उसमें अलग-अलग भाषा में"यह नंबर गलत है"सुनने को तो मिलता था। ख़ैर इन सब की अलग ही खुशी थी। लैंडलाइन तो पड़ोसियों के लिए भी अपातकालीन सुविधा थी। अपने रिश्तेदारों से बातें करने का बेहद खूबसूरत जरिया थी। फिर आया मोबाइल फोन जिसमें सिर्फ सुनना ही नही एक-दूसरे को देख भी सकते है। अब घर में एक नही एक से ज्यादा फोन होते है। जहां पहले फोन का इंतजार होता था, आज हम फोन करने में ही आलस करते है। दिनभर सिर्फ फालतू उपयोग में अपना वक्त जाया करते है। अब तो सिर्फ टेक्स्ट मैसेज से ही काम चला लेते है। जहां पहले फोन के पास जरूर होने पर ही जाते, आज फोन हर वक्त अपने साथ रहता है और इतना रहता है कि पास में बैठा इंसान आपसे क्या बातें कर रहा, इसका हमें कोई ख्याल नही रहता। अब किसी के पास बैठकर बात करने का वक्त नही लेकिन फोन चलाने का वक्त ही वक्त है। मिलते भी हैं तो सारा वक्त फोटोज़ और उनको पोस्ट करने में निकल जाता है। क्या ये सुख-सुविधाओं से भरी ज़िंदगी अपनों से दूर ले जा रही या हम स्वयं ही अपनों से दूर हो रहे। बनाए थे ये साधन अपनी सुविधा के लिए लेकिन हम खुद ही इसमें उलझ रहे।" © शिखा शर्मा #मेरी_सुनो_ना #ThenandNow #ImageStories #Nojotoimageprompt #शायरी #Nojoto #nojotohindi #Poetry #Thoughts #Life