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2. अष्टम ( 8 ) अंक- आठ देवी शैलपुत्री के बारे में

2. अष्टम ( 8 )  अंक- आठ
देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप में हमारे समक्ष सदैव उपस्थित रहती हैं।आज मैया ब्रह्मचारिणी का दिन है और इन्हें हम ( 8 ) अंक के रूप में देखते हैं। जीवन के पहले आठ साल हम अपने माता पिता और परिवार के सानिध्य में ही रहते हैं। देवताओं में वसुओं (पृथ्वी, अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, आकाश, ध्रुव, चंद्रमा, और सूर्य ) की संख्या भी आठ ही है। सिद्धियों की संख्या भी आठ है, योग के भी आठ अंग अष्टाङ्ग योग कहलाते हैं।भावनात्मक समझ और भाषा की बूझ का प्रथम सोपान 8 वर्ष की आयु में प्रकट होता है।जीवन चेतना और उसकी उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति के इस स्वरूप का नाम ही ब्रह्मचारिणी' है। हम गौरी' माता के इस रूप को नमन करते हैं। 2. अष्टम ( 8 )  अंक- आठ
देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप में हमारे समक्ष सदैव उपस्थित रहती हैं।आज मैया ब्रह्मचारिणी का दिन है और इन्हें हम ( 8 ) अंक के रूप में देखते हैं। जीवन के पहले आठ साल हम अपने माता पिता और परिवार के सानिध्य में ही रहते हैं। देवताओं में वसुओं (पृथ्वी, अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, आकाश, ध्रुव, चंद्रमा, और सूर्य ) की संख्या भी आठ ही है। सिद्धियों की संख्या भी आठ है, योग के भी आठ अंग अष्टाङ्ग योग कहलाते हैं।भावनात्मक समझ और भाषा की बूझ का प्रथम सोपान 8 वर्ष की आयु में प्रकट होता है।जीवन चेतना और उसकी उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति के इस स्वरूप का नाम ही ब्रह्मचारिणी' है। हम गौरी' माता के इस रूप को नमन करते हैं।

दाहिने हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किये साधारण से स्वेत वस्त्रों में पैदल चलकर आती हुई मैया ब्रह्मचारिणी' सरस्वती का आदि रूप हैं। वे चारो वेदों की माँ हैं। विद्या और विद्यालय इन्हीं का विस्तार हैं।शिक्षा, शिक्षण, प्रशिक्षण, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, आदि ब्रह्मचारिणी की ही देन हैं।
वे सम्पूर्ण सृष्टि को  चेतना और बोध प्रदान करती हैं।शिक्षा संकुल, प्रशिक्षण केंद्र, विद्यालय, महाविद्यालय, शोध संस्थान आदि उन्ही का विस्तार है।

जीवन मूल्यों से अवगत कराने वाली माता ब्रह्मचारिणी ही बाल्यावस्था से लेकर जीवन पर्यंत तक संस्कार और संस्कृति का निर्माण करती हैं। हमारे सामाजिक जीवन को दिशा देती हैं।भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बनती हैं।वे नैतिकता और सदाचरण का साकार स्वरूप हैं। तप , त्याग, वैराग्य, संयम प्रदान करने वाली माता ब्रह्मचारिणी जीवन के जगत का प्रशासन है।संविधान और कानून के रूप में हम उन्हीं की उपासना करते हैं।नीति और नियम के रूप में उन्हीं की अनुपालना करते हैं। हम माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो संयम और बोधपूर्ण व्यवहार को आत्मसात करना होगा। मैं माता ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना करता हूँ कि वे सदैव सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।
2. अष्टम ( 8 )  अंक- आठ
देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप में हमारे समक्ष सदैव उपस्थित रहती हैं।आज मैया ब्रह्मचारिणी का दिन है और इन्हें हम ( 8 ) अंक के रूप में देखते हैं। जीवन के पहले आठ साल हम अपने माता पिता और परिवार के सानिध्य में ही रहते हैं। देवताओं में वसुओं (पृथ्वी, अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, आकाश, ध्रुव, चंद्रमा, और सूर्य ) की संख्या भी आठ ही है। सिद्धियों की संख्या भी आठ है, योग के भी आठ अंग अष्टाङ्ग योग कहलाते हैं।भावनात्मक समझ और भाषा की बूझ का प्रथम सोपान 8 वर्ष की आयु में प्रकट होता है।जीवन चेतना और उसकी उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति के इस स्वरूप का नाम ही ब्रह्मचारिणी' है। हम गौरी' माता के इस रूप को नमन करते हैं। 2. अष्टम ( 8 )  अंक- आठ
देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप में हमारे समक्ष सदैव उपस्थित रहती हैं।आज मैया ब्रह्मचारिणी का दिन है और इन्हें हम ( 8 ) अंक के रूप में देखते हैं। जीवन के पहले आठ साल हम अपने माता पिता और परिवार के सानिध्य में ही रहते हैं। देवताओं में वसुओं (पृथ्वी, अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, आकाश, ध्रुव, चंद्रमा, और सूर्य ) की संख्या भी आठ ही है। सिद्धियों की संख्या भी आठ है, योग के भी आठ अंग अष्टाङ्ग योग कहलाते हैं।भावनात्मक समझ और भाषा की बूझ का प्रथम सोपान 8 वर्ष की आयु में प्रकट होता है।जीवन चेतना और उसकी उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति के इस स्वरूप का नाम ही ब्रह्मचारिणी' है। हम गौरी' माता के इस रूप को नमन करते हैं।

दाहिने हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किये साधारण से स्वेत वस्त्रों में पैदल चलकर आती हुई मैया ब्रह्मचारिणी' सरस्वती का आदि रूप हैं। वे चारो वेदों की माँ हैं। विद्या और विद्यालय इन्हीं का विस्तार हैं।शिक्षा, शिक्षण, प्रशिक्षण, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, आदि ब्रह्मचारिणी की ही देन हैं।
वे सम्पूर्ण सृष्टि को  चेतना और बोध प्रदान करती हैं।शिक्षा संकुल, प्रशिक्षण केंद्र, विद्यालय, महाविद्यालय, शोध संस्थान आदि उन्ही का विस्तार है।

जीवन मूल्यों से अवगत कराने वाली माता ब्रह्मचारिणी ही बाल्यावस्था से लेकर जीवन पर्यंत तक संस्कार और संस्कृति का निर्माण करती हैं। हमारे सामाजिक जीवन को दिशा देती हैं।भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम बनती हैं।वे नैतिकता और सदाचरण का साकार स्वरूप हैं। तप , त्याग, वैराग्य, संयम प्रदान करने वाली माता ब्रह्मचारिणी जीवन के जगत का प्रशासन है।संविधान और कानून के रूप में हम उन्हीं की उपासना करते हैं।नीति और नियम के रूप में उन्हीं की अनुपालना करते हैं। हम माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो संयम और बोधपूर्ण व्यवहार को आत्मसात करना होगा। मैं माता ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना करता हूँ कि वे सदैव सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।