ख़ुद को पहचान गई वो (अनुशीर्षक में पढ़ें) ख़ुद को पहचान ही गई वो नैनों में ज्वाला थी उसके, आख़िर कब तक अपमान सहती वो देना ही पड़ा इक दिन जवाब, आख़िर कब तक चुप रहती वो दिल में उसके भी थी उमंगें,