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जब भी लगे निकल रहा है

                            
जब भी लगे
निकल रहा है जीवन हाथ से 
फिसल रही है ख्वाहिशें  । 
जब से खुद से लगे कमाने, 
दबी रही फर्माहिशें । 

 अश्रु की बांध में क्षमता  नही 
उमड़ रहा हो वेग हृदय का। 
अंतरमन की मांग हो , 
चीखने तम वेदना का।

जब भी लगे 
बंधनों की उलझनों में, 
गाँठों की गणना मुंकिन नही अब। 
समाप्त हो गया क्षमा का भंडार
अच्छा बनने की ख्वाहिश रहती नही अब

तब, स्वयं की खोज में निकलना 
चार गाली लोग देलें, 
लेकिन जीवन जी ही लेना 
............. शिवांगी

©shivi voice
  #jeevan_ki_खोज