Please read in caption जज्बातों के समंदर इस तरह बह चले सैलाब भी शर्मिंदा हैं, दिल पर आघात और आंसू भी हैरान कि आब भी जिंदा हैं, नरगिस ए साहिर जो थी कभी अब तेरी याद में है आबशार, गम टपके आखों से बैचैन हो तड़पता उठता हैं ज़ार-ज़ार, बरसती आंखों के सैलाब को अब तुम ना रोक पाओगे यारा, हृदय आघात कर यादों में सिसकती सांसों का इल्ज़ाम है यारा,