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क्यों दूर हो खड़े डरे डरे अचरज से भरे सहमे से सकु

क्यों दूर हो खड़े 
डरे डरे
अचरज से भरे
सहमे से सकुचाए हुए?
क्या कोई बैर अपनों से,या
आंखों में चुभते सपनों से ?
जिंदगी के गर्म थपेड़ों से ?
रोज़मर्रा के झमेलो से ?
अधूरे ख्वाबों से ?
ना मिले रहे जवाबों से ?
ना पूरी हो रही दुआओं से ?
दम घोटती कड़वी हवाओं से ?
बुझ रही उम्मीदों से ?
अधूरी लकीरों से ?
गहरे काले अंधेरों से ?
ना हो रहे सवेरों से ?
बादल गम के छाए है कैसे?
कैसे भंवर तुम्हें हैं घेरे ?
मैं सुंनूगा, मुझे से कहो
आओ बैठो पास मेरे !!

©Pawan Shah
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