आत्महन्ता! अतिरेक तरंगें स्नायु तंत्र को सिकोड़ती / निचोड़कर रक्त की आर्द्रता सारी कलस्टर कणिकाओं / यानि खून का थक्का जमता होगा मैं पूछ रहा, श्वास लेने में कहीं कोई तकलीफ़ तो नहीं अटकता है कुछ क्या... / तब तो बदलती फिजाओं में होती है घुटन अगर हां / तो फिर...तू जा खुली हवा में सांस ले, दम भर! फिर आना इधर मेरी मान्यताओं की बकठेठी सुनने वैसे तुम चाहो, अन्यथा / ले सकते हो। मगर देखो ! मैं हूं जीवन- जीवन्त और भ्रमणशील तू दूर रह मुझसे / मत हो शामिल मेरी दौड़ ए आवारगी में वरना... एक दिन, अचानक, यूं ही तू करेगा वध, निज हाथों ही मगर किसका... /खैर जाने दो... @manas_pratyay ©river_of_thoughts #aatmahanta