हे मनुष्य हे मनुष्य .. उठ ,जाग और एक ऐसे समाज के निर्माण में लग जा जहां इंसान द्वारा इंसान का शोषण न हो, जहा कुआ तो हो ,लेकिन ठाकुर का न हो , जहा किसी हल्कू को ठंड में न ठिठुरना पड़े जहा हिंदू ,मुस्लिम की नही ! एक इंसान की बात हो। इस अंधकारमयी दुनिया में आशा का नया सवेरा बनकर । विभाजित पृथ्वी को एक करने के लिए। उठ ,जाग , खड़े हो जिस समाज में नजरूल पास जैसे लेखक हो, जहा मुंशी प्रेमचन्द ,शरतचंद्र की साहित्य और केवल परसाई जी की व्यंग्य हो। जुट जा भगत ,सुभाष ,आजाद के सपनो का भारत बनाने में , प्रेमचंद के अनमोल रतन बन के दिखा और दिखा दे की इंसान की परिभाषा कैसी होती है कवि - कमल ©Devid Devid कमल कि कविता