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है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तो

है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में।

जो ढल ना पायी मैं उन सांचो में
जो तुमने ढाला है।
जो बंध ना पायी उन नियमों में
जो तुमको अति प्यारा है।
क्यों साथ तेरा, विश्वास तेरा, आता बंधन की पर्तों में ।
है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में।

हूं स्वनिर्भर मैं बोझ नहीं !
क्या मेरी कोई सोच नहीं?
मेरी दुनिया, मेरे सपने,
क्या उनका कोई मोल नहीं?
क्यों उलझा है जीवन मेरा अवसर को नित संघर्षों में?
है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में।

हो अग्नि परीक्षा क्यों मेरी?
और तुमको सब कुछ माफ हुआ।
पत्नीव्रता क्यूं तुम न बनो,
कहो, ये कैसा इंसाफ हुआ?
है समझा तुमने मेरी हर एक बात तुम्हारे अर्थों में!
है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में।

©Jupiter and it's moon....(प्रतिमा तिवारी)
  वो प्यार तुम्हारा शर्तों में....!

है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में।

जो ढल ना पायी मैं उन सांचो में
जो तुमने ढाला है।
जो बंध ना पायी उन नियमों में
जो तुमको अति प्यारा है।

वो प्यार तुम्हारा शर्तों में....! है क्या करना जो मिल भी गया वो प्यार तुम्हारा शर्तों में। जो ढल ना पायी मैं उन सांचो में जो तुमने ढाला है। जो बंध ना पायी उन नियमों में जो तुमको अति प्यारा है। #कविता

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