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मुझे नहीं पता कब कैसे चलने लगी कलम काग़ज़ पर याद है

मुझे नहीं पता
कब कैसे
चलने लगी कलम काग़ज़ पर
याद है तो सिर्फ़ इतना कि
उस रोज़...
कहीं कुछ टूटकर बिखरा था
और मैं भीगी थी
आँसुओं के सैलाब में
उसी दिन शायद...
मैं बदल गयी थी
हर बात काग़ज़ से कहने लगी थी
हरे घाव पर
मौन शब्दों का लेपन करने लगी थी..!
🌹 #mनिर्झरा 
Copyright protected ©️®️
03/10/2020
#yqdidi 
#yqhindi 
#yqquotes 
#yqdard 
#feelings
मुझे नहीं पता
कब कैसे
चलने लगी कलम काग़ज़ पर
याद है तो सिर्फ़ इतना कि
उस रोज़...
कहीं कुछ टूटकर बिखरा था
और मैं भीगी थी
आँसुओं के सैलाब में
उसी दिन शायद...
मैं बदल गयी थी
हर बात काग़ज़ से कहने लगी थी
हरे घाव पर
मौन शब्दों का लेपन करने लगी थी..!
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