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Sea water #तीन_कुण्डलिया_छंद (1) कहते हैं यह संतज

Sea water #तीन_कुण्डलिया_छंद

(1)
कहते हैं यह संतजन,त्यागो गुण-अभिमान।
दोष न देखो और में,तजो मान-अपमान।।
तजो मान-अपमान,ईश को ख़ुद में देखो।
सब में हरि का अंश,सरस मन में यूँ लेखो।।
कह सतीश कविराय,कष्ट सब ख़ुद ही ढहते।
त्यागो गुण-अभिमान,संतजन हैं यह कहते।।
(2)
मीत हमारे सब भले,माने सरस सतीश।
स्वजन सभी नित ख़ुश रहें,कृपा करे जगदीश।।
कृपा करे जगदीश,प्रफुल्लित होवे जीवन।
मेरा नहीं विरोध,सभी का है सच्चा मन।।
कह सतीश कविराय,सभी दिल से अति प्यारे।
माने सरस सतीश,भले सब मीत हमारे।।
(3)
बुरी न मानें दोस्तो,हरगिज़ मेरी बात।
भाव सहज जब भी उठें,पेश करूँ ज़ज़्बात।।
पेश करूँ ज़ज़्बात,मानता आप बड़े हैं।
उनसे नहीं दुराव,स्वयं जो स्वयं अड़े हैं।
कह सतीश कविराय,करें सब जो भी ठानें।
हरगिज़ मेरी बात,दोस्तो बुरी न मानें।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #तीन_कुण्डलिया_छंद