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: सबके आंगन की फुलवारी मैं फिर भी मेरा कोई मान नही

 : सबके आंगन की फुलवारी मैं फिर भी मेरा कोई मान नहीं, 
लक्ष्मी दुर्गा पार्वती कहते हो फिर भी मेरा कोई सम्मान नहीं,,
 ये कैसा युग आया है मानवाता से ज्यादा हैवानियत सब में पाया  है,
तोड़ दो उस कानून को जिसने भी बनाया  है नहीं चाहिए ऐसा लोकंतत्र जो हमारी बेटी का दर्द समझ नहीं पाया है आखिर कब तक कैडील मार्च निकालोगे
जब कैंडील बुझ जाएगा
तब अपने अपने घरों को चले जाओगे
अगर इस बार रुक गए, तो कोई उपवन में फूल ना पाओगे,
 : सबके आंगन की फुलवारी मैं फिर भी मेरा कोई मान नहीं, 
लक्ष्मी दुर्गा पार्वती कहते हो फिर भी मेरा कोई सम्मान नहीं,,
 ये कैसा युग आया है मानवाता से ज्यादा हैवानियत सब में पाया  है,
तोड़ दो उस कानून को जिसने भी बनाया  है नहीं चाहिए ऐसा लोकंतत्र जो हमारी बेटी का दर्द समझ नहीं पाया है आखिर कब तक कैडील मार्च निकालोगे
जब कैंडील बुझ जाएगा
तब अपने अपने घरों को चले जाओगे
अगर इस बार रुक गए, तो कोई उपवन में फूल ना पाओगे,