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आम आदमी की नज़रो से तो भाई गुब्बारा छुट रहा है। और

आम आदमी की नज़रो से तो भाई
गुब्बारा छुट रहा है।
और एक कवि की मानें तो 
चाहत से सजाई थी आज वो
तस्वीर टुट गई
उम्मीदों से भरी एक गठरी थी पास मेरें
आज वो हाथ सें छुट गई। आम/कवि
आम आदमी की नज़रो से तो भाई
गुब्बारा छुट रहा है।
और एक कवि की मानें तो 
चाहत से सजाई थी आज वो
तस्वीर टुट गई
उम्मीदों से भरी एक गठरी थी पास मेरें
आज वो हाथ सें छुट गई। आम/कवि