लगता है कि तुम हो (Lagta hai ki tum ho) Shayari/ Ghazal/ Poem by Jan Nisar Akhtar (जाँ निसार अख़्तर) || SOHBAT
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो
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