गरिबी बेच कर l इक औरत ने l ऐसी,अमीरी,पाई ll दंग रहे गया खुदा,देख कर l भूल गया,खुदाई ll मुश्किल वक्त से लढती,झगडती l लेकिन कभी ना रोई ll रोना,धोना,भूल,चुकी थी l थी,उसमे,चतुराई ll वक्त के आगे,सभी,शरण,हैं l क्या वो भी कर पाई? सबकी माता,होती हैं पर l वो थी सबकी माई ll यतीम हो गये,फिरसे,बच्चे l कैसी,नौबत,आई? समाज के नुकसान की कोई l होती,नही,भरपाई ll @ विद्याधर चंद्रकांत भागवत. ©Vidyadhar Bhagwat #MatchStick