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आपने अक्सर देखा होगा कि हम हर वर्ष के

             आपने अक्सर देखा होगा कि हम हर वर्ष के एक ना एक दिन को किसी दिवस के रूप है अवश्य में मनाते हैं. इस बार हम सभी आठवें अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस मनाने की तैयारी में हैं. 21 जून यानी विश्व योगा दिवस स्वर्ग प्रथम वर्ष 2015 में 21 जून को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के रूप में मनाया गया।

यदि हम योगा के इतिहास की बात करें तो योगा इतिहास बहुत ही पुराना हैं. और यदि भारत को योगा का जन्मदाता कहा जाए तो इसमें कोई दोहराए नहीं हैं. भारत के इतिहास में योगा के कई ऐसे उदाहरण मिले हैं जिसके द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है कि योगा भारत की ही देन है। इतिहासकारों की मानें तो सिंधु घाटी सभ्यता मैं मिली कई मूर्तियां योगासन की अवस्था में प्राप्त हुई. यही नहीं बल्कि हम अपने वेदों और शास्त्रों में भी योगा का बहुत से वर्णन देख सकते हैं रामायण,महाभारत जैसे ग्रंथों में भी योगा के क्रियाओं का वर्णन किया गया हैं पुराणिक समय में ऋषि-मुनियों द्वारा लंबे समय तक आसन पर बैठना और ईश्वर की प्राप्ति करना योगा का ही एक रूप हैं। " योगा शास्त्र " व्यवस्थित ग्रंथ महर्षि पतंजलि द्वारा ईसा पूर्व शताब्दी में लिखा गया ग्रंथ है। जिससे पता चलता हैं कि प्राचीन भारत से ही योगा का एक गहरा संबंध हैं। योगा का महत्व हम भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में भी देख सकते हैं उस समय के महान कवि कबीरदास,सूरदास, तुलसीदास जी ने भी अपनी रचनाओं में योगा का वर्णन किया हैं ऐसे ही कुछ महान लेखक हैं जिन्होंने अपनी अपनी परिभाषाएं योगा के प्रति वर्णन किया है।


पतंजलि   -  " योगा का अर्थ है मानसिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण पाना। "

वेदव्यास   - " योगा समाधि है। "
             आपने अक्सर देखा होगा कि हम हर वर्ष के एक ना एक दिन को किसी दिवस के रूप है अवश्य में मनाते हैं. इस बार हम सभी आठवें अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस मनाने की तैयारी में हैं. 21 जून यानी विश्व योगा दिवस स्वर्ग प्रथम वर्ष 2015 में 21 जून को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के रूप में मनाया गया।

यदि हम योगा के इतिहास की बात करें तो योगा इतिहास बहुत ही पुराना हैं. और यदि भारत को योगा का जन्मदाता कहा जाए तो इसमें कोई दोहराए नहीं हैं. भारत के इतिहास में योगा के कई ऐसे उदाहरण मिले हैं जिसके द्वारा अनुमान लगाया जा सकता है कि योगा भारत की ही देन है। इतिहासकारों की मानें तो सिंधु घाटी सभ्यता मैं मिली कई मूर्तियां योगासन की अवस्था में प्राप्त हुई. यही नहीं बल्कि हम अपने वेदों और शास्त्रों में भी योगा का बहुत से वर्णन देख सकते हैं रामायण,महाभारत जैसे ग्रंथों में भी योगा के क्रियाओं का वर्णन किया गया हैं पुराणिक समय में ऋषि-मुनियों द्वारा लंबे समय तक आसन पर बैठना और ईश्वर की प्राप्ति करना योगा का ही एक रूप हैं। " योगा शास्त्र " व्यवस्थित ग्रंथ महर्षि पतंजलि द्वारा ईसा पूर्व शताब्दी में लिखा गया ग्रंथ है। जिससे पता चलता हैं कि प्राचीन भारत से ही योगा का एक गहरा संबंध हैं। योगा का महत्व हम भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में भी देख सकते हैं उस समय के महान कवि कबीरदास,सूरदास, तुलसीदास जी ने भी अपनी रचनाओं में योगा का वर्णन किया हैं ऐसे ही कुछ महान लेखक हैं जिन्होंने अपनी अपनी परिभाषाएं योगा के प्रति वर्णन किया है।


पतंजलि   -  " योगा का अर्थ है मानसिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण पाना। "

वेदव्यास   - " योगा समाधि है। "
hitsingh0862

Rohit singh

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