खाली जगह थी मन की, वो खाली ही रह गई बरसो की एक खलिश ,दबी की दबी ही रह गई मुद्दत से थी ये तलाश की कोई मेहरबां मिले बंद जगहों से कोई रस्ता खुले मन में ये दबिश है, दफन होकर रह गई आरज़ू बहुत थी जो अधूरी रह गई हसरत मुक्कमल हो सभी की ये जरूरी तो नहीं कही मिले आसमान कही ज़मीन मिली ही नही ©Savita Nimesh #खाली#जगह