आलोकित मेरा पूरा तन मन ज्वर चढ़ा विजय का मेरे तन कर नाद सिंह सी अश्वो पर आरूढ़ हुए कर विजय तिलक प्रतिमा समक्ष ले आई मां प्रभु का वंदन करले तनिक फिर टनकारे भर जोर जोर से कर सिंचित माटी का अंग अंग जब चले तो दुश्मन घबराए प्राणदान की इच्छा सम्मुख लाए है तेजस्वी प्रतापी महान वीरों के वीर राणा समान हर हर का नारा गूंज उठे महादेव का नाम था हर कण कण जब तलवारे नंगी नाच रही हर ओर दिखे बस लाल रुधिर कर्तव्य परायणता से बंधे हुए हर सैनिक का गौरव गूजे इंद्र , गगन से खुश होकर सुमन और अक्षत फेके ©Rahul Kumar सैनिक का गौरव #fish