ऐसा लगे जैसे बुझ गया हूँ, जलना चाहूँ फ़िर से मैं कुछ समझ नहीं आ रहा, सोचना चाहूँ फ़िर नये सिरे से मैं थक गया हूँ रोज़ एक ही ज़िंदगी जीते-जीते, ताज़गी चाहूँ फिर से मैं मर सा गया हुँ इन दुनियादारी के झमेले से, जीना चाहूँ फिर से मैं प्रश्न है क्या इन सब के लिए आया हुँ मैं यहां (दुनिया में), उत्तर चाहूँ फ़िर ख़ुद ही से मैं थम सी गयी है किसी घोंसले में काया ये मेरी, करना चाहूँ सफ़र फ़िर से मैं फीकी सी लगती है अब सुबह-शाम,दिन-रात मेरे, मिठास चाहूँ फ़िर से मैं ज़मीं पर हुँ कब से, छूना चाहूँ आसमां फिर से मैं और ये ख़ुद उलझे पर दूसरों की दलीलें देते लोग, सबकी समझ को विकसित करना चाहूँ फ़िर से मैं बारिश हो रही है कब से मूसलाधार, धूप खिलाना चाहूँ फ़िर से मैं Lockdown लगा रखी है कब से सरकार, वही आज़ादी चाहूँ फ़िर से मैं सभी पीड़ित दीख रहे हैं यहाँ, खुशहाली लाना चाहूँ फ़िर से मैं बेज़ुबां दिल ये मेरा देता दलीलें सुनना चाहूँ फ़िर से मैं ख़ुद की ही नजरों में लाज़वाब बनना चाहूँ फ़िर से मैं ©Praveen Kumar Aaine ke samne sachchi ख्वाहिशें.... #SuperBloodMoon #moon #kwahish #khaab #Happy #Moment #Thinking