हीरे की तालाश हीरे की तलाश में एक मुसाफिर फिर निकल चुका है धूप ठंड किसी की परवाह किये बिना हुए फिर वो आगे बढ़ चुका है तन पर कोई कपड़ा नहीं पेरो में आशा की जमीन थामें हुए कांधे पर उम्मीदों की पोटली टांगें हुए वह फिर आगे बढ़ चुका है देखो एक मुसाफिर फिर हीरे की तलाश में निकल चूका है निकाला जो हमने अपने घरों से कचरा आज वही कचरा उसका जीवन बन चुका है देखो एक मुसाफिर फिर हीरे की तलाश में निकल चूका है जिसका ठिकाना जिसका खाना जिसका जीवन सब कचरे के ढेरों में पाला है देखो आज वो मुसाफिर फिर से निकला चुका है आखिर क्यों यह सब कुछ उसके साथ हो रहा है थाम दिया जिस के हाथों में हमने अपना कचरा यह सब हमने बहुत गलत किया है देखो एक मुसाफिर फिर हीरे की तलाश में निकल चूका है ©harshitabhardwaj kachre wala nhi heere wala 💫 #FadingAway