इस बढ़ती हुई आबादी का जो पेट भरता है, दिन रात एक कर जो जमीं को खेत करता है, उसकी मेंहनत को जो तुम न पहचानोगे, अपने अहंकार में आकर जो हक उनका मारोगे, इतिहास करेगा क्षमा नहीं, इतना याद रखना, फिर होगा कोई अभिमान नहीं इतना याद रखना, जो करता है मेंहनत इतनी, वो घुट घुट के मर जाता है, गर कज॔ लिया गलती से भी, तो फांसी वही लगाता है, है जिसके गले में फंदे इतने, तुम फंदा और बढ़ाते हो, फिर मातृभूमि का जयकारा, तुम बोलो क्यूं लगाते हो? है दद॔ नहीं कोई दिल में, क्यूं झूठे आंशु दिखलाते हो, हो मातृभूमि का अंश अगर, तो मिट्टी का तिलक लगा लेना, हो सके आज के दिन तलक, खुद को किसान कहला लेना....abhimanyu ©Abhimanyu singh #SunSet