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शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, जो राष्ट्र हि

शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, 
जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l
रात की परछाई और दिन मे शृंगार हो, 
राजाओ को मिले, वैसा एक सम्मान हो l
मेरे लिखे पंक्ति ऐसा हो, कि युद्ध की लंकार हो, 
राज्य अभिषेक मे अप्सराओं की, पायलो की झनकार हो l
तलवारों के धार मे, चाहे शीर्ष की कतार हो,
लिखूँगा ऐसे जैसे, सूरज की किरणें मेरे कलम की धार हो l
पवन भरा धरा मे, लिखता एक किताब हूँ,
उन अल्फो पे , उनके बनाएँ जुल्फों पे l
लोक हो या परलोक हो, चाहे बनाना पड़े जोक हो
मेरे कलम से निकले स्याही, लक्ष्मन की लकीर हों l
स्वर्ग की वसुंधरा, तू भी सुन जरा,
मेरे शब्दावली मे, एक प्रचंड तलवार हो l
शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, 
जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l

©Durgesh Kumar A sentiment of author.
शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, 
जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l
रात की परछाई और दिन मे शृंगार हो, 
राजाओ को मिले, वैसा एक सम्मान हो l
मेरे लिखे पंक्ति ऐसा हो, कि युद्ध की लंकार हो, 
राज्य अभिषेक मे अप्सराओं की, पायलो की झनकार हो l
तलवारों के धार मे, चाहे शीर्ष की कतार हो,
लिखूँगा ऐसे जैसे, सूरज की किरणें मेरे कलम की धार हो l
पवन भरा धरा मे, लिखता एक किताब हूँ,
उन अल्फो पे , उनके बनाएँ जुल्फों पे l
लोक हो या परलोक हो, चाहे बनाना पड़े जोक हो
मेरे कलम से निकले स्याही, लक्ष्मन की लकीर हों l
स्वर्ग की वसुंधरा, तू भी सुन जरा,
मेरे शब्दावली मे, एक प्रचंड तलवार हो l
शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, 
जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l

©Durgesh Kumar A sentiment of author.

A sentiment of author.