शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l रात की परछाई और दिन मे शृंगार हो, राजाओ को मिले, वैसा एक सम्मान हो l मेरे लिखे पंक्ति ऐसा हो, कि युद्ध की लंकार हो, राज्य अभिषेक मे अप्सराओं की, पायलो की झनकार हो l तलवारों के धार मे, चाहे शीर्ष की कतार हो, लिखूँगा ऐसे जैसे, सूरज की किरणें मेरे कलम की धार हो l पवन भरा धरा मे, लिखता एक किताब हूँ, उन अल्फो पे , उनके बनाएँ जुल्फों पे l लोक हो या परलोक हो, चाहे बनाना पड़े जोक हो मेरे कलम से निकले स्याही, लक्ष्मन की लकीर हों l स्वर्ग की वसुंधरा, तू भी सुन जरा, मेरे शब्दावली मे, एक प्रचंड तलवार हो l शेर सा दहाड़ हो, वीरों सा पुकार हो, जो राष्ट्र हित मे चले, वैसा एक बहार हो l ©Durgesh Kumar A sentiment of author.