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कैसी दरिंदगी का शिकार हो गई मैं नारी बनकर श्राप हो

कैसी दरिंदगी का शिकार हो गई मैं
नारी बनकर श्राप हो गयी मैं।।
क्या कसूर था मेरा, जो यह दर्द मिला
अब तो नारी बनने से ही मुझे होने लगी गिला।।

आखिर कब तक होता रहेगा हमारा चीर-हरण
क्या ऐसा ही रह गया हमारा जीवन मरण।।
मेरे बापू की अब हिम्मत टूट गयी
क्योंकि उसकी बेटी की इज्जत लूट गयी।।

मेरी माँ ने मेरे लिए सपने देखे थे हजार
उस क्या पता था। की वहशी है यह बाजार।।
आखिर मैं भी कब तक रहूँगी ऐसे ही लाचार
किसी को क्यों नहीं सुनाई दे रही मेरी पुकार।।

मेरे जीवन में छा गया अंधेरा घोर है
बस दो दिन का हल्ला, दो दिन का शोर है।।
केवल दर्द सहता मेरा परिवार ना कोई ओर है
मैं भी तो देखूँ की तेरे इंसाफ में कितना जोर है।।

©Amit Prajapati Ajmer
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