लोग न जाने क्यों दग़ा देते हैं, बुझते हुए शोलों को हवा देते हैं। जीते जी जिन्हें मयस्सर नहीं विसाल, बाद मरने के लहद पर गुल चढ़ा देते हैं। हमने देखें हैं ऐसे तबीब-ए-दिल बोहोत, जो ख़ुद ज़हर देते हैं फिर दवा देते हैं। है दाना तो न खायेगा फरेब "हथ'रवी" अब शैख़ साहब भी दोबारा मौका कहाँ देते हैं। ~हिलाल हथ'रवी . ©Hilal Hathravi #Bicycle #Tabeeb_e_Dil #Daga #Dil