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पल्लव की डायरी लेखा जोखा पेश हुआ,हकीकते शर्माती है

पल्लव की डायरी
लेखा जोखा पेश हुआ,हकीकते शर्माती है
वायदे वचन से खूब घुमाते है
आय खो चुकी जनता रोजगार पर हाथ मलती है
महँगाई के भार,घर घर फूंकते
दूध आटे पर कर वसूलते है
हर महीने दाम बढ़ाते
फिर बजट से कियो भरमाते हो
 अमृत महोत्सव का नारा देकर
जहर जनता में बटवाते है
तामझाम और विज्ञापन के बल पर
छलने की विसात बिठाते है
रुपये की कीमत दम तोड़ती
फीकी चमक हर चेहरों पर है
सियासत वाजी के कारण
भारत का अंग अंग घायल है
                                          प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  लेखा जोखा पेश हुआ,हक़ीक़ते शर्माती है

लेखा जोखा पेश हुआ,हक़ीक़ते शर्माती है #कविता

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