मैंने तुमने देखा है हर एक राज़ को दफनाते हुए हर बार देखा मैने इन चट्टानों से लिपट कर रोते हुए याद करते हो ना हर वो लिखी बाते जो जहन में दबी है इस बचपन की यादों को शिकवे गिले में लपेटे सरहदों मे सिमट गये हमारे प्रेम के प्रतेक निशान मेरे सीने मे दफ़न जो कोई बार भर कर मेरे गुल्लक मे समेटि यादों का भंडार है बाहों को फलाए दादी का लाड है हैरानगी नहीं आज तक याद है सभी बातों का जवाब हैं मिलकर बताएं या दीवारों पर तस्वीरें बनाए तुम हे पूरी तरह सतह पर भिचाय नहीं है अपनी कलम से निकली स्याही मे पिघलाया नहीं है हर हिसास इन इमारतों में मै ख़ुद का लगता हू हमारी कहानिया नादानिया सा बरसता हु हर कोई यहाँ आया होगा मगर आज भी सरहद पार में तुम्हारे हा का इंतज़ार करता ह इन लाहौर और भारत की सरहद के एक होने का इंतज़ार करता हु लिखी मैनें भी कई ख़त तुम्हारे नाम उस ओर भजने को दिल बार बार कहता रहा तुम्हारी आवाज़ नींद मे जगाती रही तुम से हम का सफर एक होने की उम्मीद जगाती रही.... इन सरहदी लडाई को बेवफ़ा मोहब्बत न कहना हर सास मे शामिल हो तुम आज भी सास जितनी भी है इल्ज़ामों न देना, बची साँसों को चैन वैसे नहीं। बस एक बार मिल लेना तुम्हारे ख़त आज भी सभाले हैं मैने... बस इतना आसान नहीं अलविदा कहना.. सरहद पार बचपन का ehsaas इंतज़ार में हैं... इंतज़ार में है... मैंने तुमने देखा है हर एक राज़ को दफनाते हुए हर बार देखा मैने इन चट्टानों से लिपट कर रोते हुए याद करते हो ना हर वो लिखी बाते जो जहन में दबी है इस बचपन की यादों को शिकवे गिले में लपेटे सरहदों मे सिमट गये हमारे प्रेम के प्रतेक निशान मेरे सीने मे दफ़न जो कोई बार भर कर मेरे गुल्लक मे समेटि यादों का भंडार है बाहों को फलाए दादी का लाड है हैरानगी नहीं आज तक याद है सभी बातों का जवाब हैं