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हस्ति तेरि भि एक रोज मिट जाऐगि क्यु अकड़ता है ईतना

हस्ति तेरि भि एक रोज मिट जाऐगि
क्यु अकड़ता है ईतना अपनि शान ओ 
शौकत पर
ये शान ये शौकत मिट्टि मे एक दिन मिल जाएगि
दरिया का पानी भि पिने को कम होगा 
जब रूह तेरि जिस्म से निकलने को फड़फड़ाऐगि
मत मारो हक ना छीनो सुकून का 
ये बद्दुवा तेरि तेरि नसल को भि खा जाएगि
और जब घमंड दौलत का आ जाये तो
निकला कऱो शमशान या कब्रिस्तान  कि तरफ
ना जाने ईस मौत ने कैसे कैसो को
अपनि अगोश मे सुलाई है

©Anwar Anwar Hu yaar
  #Hasti Teri bhi