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सांस लेती हूं, तो दुख उभर आता है,आंखों में ! मुंह

सांस लेती हूं,
तो दुख उभर आता है,आंखों में !
मुंह से सांस फूंक कर
बाहर धकेलती हूं।।
एक पल के लिए ही सही
पीड़ा भी फूंक के साथ बाहर
निकल जाती है।
पर क्या करूं,
अगली सांस अंदर खींचते ही
वापस बिन बुलाए सर उठाए
श्वास नली को छलनी करते हुए
फिर से सारी वेदना अंदर चली आती है!! स्वकीया...
सांस लेती हूं,
तो दुख उभर आता है,आंखों में !
मुंह से सांस फूंक कर
बाहर धकेलती हूं।।
एक पल के लिए ही सही
पीड़ा भी फूंक के साथ बाहर
निकल जाती है।
पर क्या करूं,
अगली सांस अंदर खींचते ही
वापस बिन बुलाए सर उठाए
श्वास नली को छलनी करते हुए
फिर से सारी वेदना अंदर चली आती है!! स्वकीया...
swakeeya2403

Swakeeya ..

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स्वकीया...