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बाल- काव्य चूहा आया- चूहा आया, बिना बुलाए खुद ही

बाल- काव्य

चूहा आया- चूहा आया, 
बिना बुलाए खुद ही आया।

घर में जाने कहाँ से आया, 
कुतर- कुतर कर सब कुछ खाया।

एक पूँछ दो आँखें पाईं, 
चार पैर से दौड़ लगाई।

छुप-छुपकर बिल में है रहता, 
बिल्ली मौसी से है डरता।

रात हुए जब सब सो जाते,
चूहा जी तब  दौड़ लगाते।

गणेशजी की हैं ये सवारी,
मुँह पर मूछें लगती प्यारी।

कागज, कपड़े, फसल, मिठाई,
खाकर के लेते अंगड़ाई।

जो मिल जाए सब कुछ खाते,
मिश्राहारी ये कहलाते।

रोज निराले खेल दिखाते,
चुन्नू मुन्नू को हर्षाते ।

©Mukeshkumar Pandey chuhe par kavitall Mukeshkumar Pandeyll bal kavyall Rat Poemll
बाल- काव्य

चूहा आया- चूहा आया, 
बिना बुलाए खुद ही आया।

घर में जाने कहाँ से आया, 
कुतर- कुतर कर सब कुछ खाया।

एक पूँछ दो आँखें पाईं, 
चार पैर से दौड़ लगाई।

छुप-छुपकर बिल में है रहता, 
बिल्ली मौसी से है डरता।

रात हुए जब सब सो जाते,
चूहा जी तब  दौड़ लगाते।

गणेशजी की हैं ये सवारी,
मुँह पर मूछें लगती प्यारी।

कागज, कपड़े, फसल, मिठाई,
खाकर के लेते अंगड़ाई।

जो मिल जाए सब कुछ खाते,
मिश्राहारी ये कहलाते।

रोज निराले खेल दिखाते,
चुन्नू मुन्नू को हर्षाते ।

©Mukeshkumar Pandey chuhe par kavitall Mukeshkumar Pandeyll bal kavyall Rat Poemll