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वो बचपन कितना खुशगवार था, जब हम अपनों से फरमाइशें

वो बचपन कितना खुशगवार था, जब हम अपनों से फरमाइशें करते थे,
ना जाने कहा खो गए हसी पल, जब हम अपनों से सिफारिशें करते थे।
बहुत ढूंढा पर वो तो मिला नही, ना जाने क्यों हम अब इतने बड़े हो गए,
कभी जिद करते थे, कभी प्रेम से बोलकर, अपनों से गुज़ारिशें करते थे।।
अब तो इतना  तन्हा अकेले हो गये, नही देने वाला है अब  कोई सहारा,
होके सबसे दूर समुद्र के किनारे बैठ, सबसे मिलने की कोशिशें करते थे। 📌नीचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 की प्रतियोगिता :- 190 में स्वागत करता है..🙏🙏

💫आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
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