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मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से पूर्ण नह

मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से 
पूर्ण नहीं होता..
ये 'जीवन यज्ञ'।
इसे चाहिए..
तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक बूँद
'प्रक्षालन' हेतु..।
इसे चाहिए..
तुम्हारे निःस्वार्थ भाव से किए 
तप और पूजा प्रार्थनाओं का 'पंचामृत'।
इसे चाहिए..
तुम्हारे टूटे वचनों और 
अधूरे प्रयत्नों का 'यज्ञोपवीत'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी हर छोटी भूल और पाप की 'कुशा' ..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी अस्थि मज़्ज़ा रक्त का 'आसन'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारे श्वासों और आकांक्षाओं की 
अनगिनत 'आहुतियाँ'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी देह के चिन्तः घृत का आचमन,हर 'स्वाहा' पर।
इसे चाहिए.. 
हर संबंध और हर स्वार्थ की अंतिम पराकाष्ठा की 'समिधा'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारी सोच के हर केल-पत्र  पल्लव की छाया ।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारी इच्छा के सभी 
सुवासित-कोमल पुष्प की 'मालाएँ'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी हर अंतिम जमा पूँजी की 'सामग्री' ।
इसे चाहिए..
तुम्हारे हृदय के पिघलते लावे की  'लपट' ।
इसे चाहिए..
तुम्हारे भाव ,लज्जा ,प्रेम और हर संबंध की पूर्ण 'आहुति'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी सारी चिरौरियों ,गिड़गिड़ाहटों और रुदन की 'आरती'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारे सारे सुकर्मों  से अर्जित 'प्रसाद'..। 
तब ......
तब जा कर..ये जीवन 
तुमसे कुछ संतुष्ट हो, 
तुम पर कृपा करता है 
और प्रसन्न हो तुमको देता है..

 मृत्यु का 'वरदान..। मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से 
पूर्ण नहीं होता..
ये 'जीवन यज्ञ'।

इसे चाहिए..
तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक बूँद
'प्रक्षालन' हेतु..।
इसे चाहिए..
मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से 
पूर्ण नहीं होता..
ये 'जीवन यज्ञ'।
इसे चाहिए..
तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक बूँद
'प्रक्षालन' हेतु..।
इसे चाहिए..
तुम्हारे निःस्वार्थ भाव से किए 
तप और पूजा प्रार्थनाओं का 'पंचामृत'।
इसे चाहिए..
तुम्हारे टूटे वचनों और 
अधूरे प्रयत्नों का 'यज्ञोपवीत'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी हर छोटी भूल और पाप की 'कुशा' ..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी अस्थि मज़्ज़ा रक्त का 'आसन'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारे श्वासों और आकांक्षाओं की 
अनगिनत 'आहुतियाँ'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी देह के चिन्तः घृत का आचमन,हर 'स्वाहा' पर।
इसे चाहिए.. 
हर संबंध और हर स्वार्थ की अंतिम पराकाष्ठा की 'समिधा'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारी सोच के हर केल-पत्र  पल्लव की छाया ।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारी इच्छा के सभी 
सुवासित-कोमल पुष्प की 'मालाएँ'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी हर अंतिम जमा पूँजी की 'सामग्री' ।
इसे चाहिए..
तुम्हारे हृदय के पिघलते लावे की  'लपट' ।
इसे चाहिए..
तुम्हारे भाव ,लज्जा ,प्रेम और हर संबंध की पूर्ण 'आहुति'..।
इसे चाहिए..
तुम्हारी सारी चिरौरियों ,गिड़गिड़ाहटों और रुदन की 'आरती'..।
इसे चाहिए.. 
तुम्हारे सारे सुकर्मों  से अर्जित 'प्रसाद'..। 
तब ......
तब जा कर..ये जीवन 
तुमसे कुछ संतुष्ट हो, 
तुम पर कृपा करता है 
और प्रसन्न हो तुमको देता है..

 मृत्यु का 'वरदान..। मात्र संवेदनाओं,समृद्धियों और सफलताओं से 
पूर्ण नहीं होता..
ये 'जीवन यज्ञ'।

इसे चाहिए..
तुम्हारे द्रवित नैनों से गिरती अश्रुधार की प्रत्येक बूँद
'प्रक्षालन' हेतु..।
इसे चाहिए..