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परोऽपि हितवान् बन्धु: बन्धुरप्यहित: पर:।⁣ अहितः दे

परोऽपि हितवान् बन्धु: बन्धुरप्यहित: पर:।⁣
अहितः देहजो व्याधि: हितमारण्यमौषधम् ॥⁣
(⁣हितोपदेश)

बीमारियाँ हमारे शरीर के भीतर रहते हुए भी हमारा बुरा करती हैं और औषधियाँ (जड़ी-बूटियाँ) हमसे दूर पेड़-पौधों में  रहकर भी हमारा भला करती हैं
 
(अर्थात् व्याधियाँ हमारे दुश्मन हैं और औषधियाँ मित्र)। 

इसी प्रकार से जिनसे हमारा रक्त का सम्बन्ध अर्थात् किसी प्रकार की रिश्तेदार न हो किन्तु वह हमारा हित करे तो वे अपने होते हैं और यदि रिश्तेदार होकर भी कोई हमारा अहित करे तो वह पराया होता है।⁣ वनस्पतियों का संरक्षण करें।
परोऽपि हितवान् बन्धु: बन्धुरप्यहित: पर:।⁣
अहितः देहजो व्याधि: हितमारण्यमौषधम् ॥⁣
(⁣हितोपदेश)

बीमारियाँ हमारे शरीर के भीतर रहते हुए भी हमारा बुरा करती हैं और औषधियाँ (जड़ी-बूटियाँ) हमसे दूर पेड़-पौधों में  रहकर भी हमारा भला करती हैं
 
(अर्थात् व्याधियाँ हमारे दुश्मन हैं और औषधियाँ मित्र)। 

इसी प्रकार से जिनसे हमारा रक्त का सम्बन्ध अर्थात् किसी प्रकार की रिश्तेदार न हो किन्तु वह हमारा हित करे तो वे अपने होते हैं और यदि रिश्तेदार होकर भी कोई हमारा अहित करे तो वह पराया होता है।⁣ वनस्पतियों का संरक्षण करें।

वनस्पतियों का संरक्षण करें।