धीरे धीरे जब रात ढली, तब रात के संग में ठंड बढ़ी। जो अश्रु ठंड में निकल रहे, वो पलकों पे जमनें सी लगी। जो सिसकी मुख से निकल रही, वो आहें भी थमनें सी लगी। मन सिहर रहा तन पाला था, भीषण ठंडी की रात थी वो, बस अन्त ही होनें वाला था। वो ही कुत्ता ना जानें कहाँ से, इक पन्नी खींच के लाया था, उन कंपती ठिठुरी अम्मा को, पूरा ढक कर के उढ़ाया था। अब भी तो ठिठुर के काँप रहीं.... बूढ़ी अम्मा........ #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....