कोई जाके कहदे निजाम से ईमान से मेरी दोस्ती है अवाम से ईमान से तुम चाह कर हरगिज़ न रोक पाओगे निकला हुआ मैं तीर हूं कमान से ईमान से ये तो सच है कि इख़लास मेरे अच्छे हैं सिर्फ अग़लात थोड़ी कहता हूं ज़बान से ईमान से वकील अहमद रज़ा ©waqil ahmad raza बज़्म ए उर्दू अदब