माँ ही रह-रहकर उम्मीद बँधाती है माँ की थपकी सबकुछ भुलाती है रिश्तों में पड़ने लगे हैं मिर्च और मसाले मगर माँ आज भी सादे रस्मों को निभाती है # माँ राज़-ए -ज़िन्दगी बताती है