संविधान से हूं मजबूर, बस अपनी हद में रह जाता हूं, सरहद पर गोली खा कर भी, बस मौन रह जाता हूं। खर्च करके खुद को मैंने सरहदों को तो बचा लिया, पर गद्दारी की दीमक ने मेरा देश अन्दर से खा लिया। क्षत-विक्षित भी हुआ सरहद पर मैं, पर कभी ग़म ना था, पर मेरी ही शहादत पर खेल सियासत ने खेला कम ना था। जी करता है लौट आऊं सरहद से, पर कर्तव्य में बंध जाता हूं भारत मां की आन के खातिर सीने पर भी गोली मैं खाता हूं। मेरी मजबूरी को मेरी ए दुश्मन कमजोरी जो तू समझता है, अपनी हद में रहकर मुझे जवाब अच्छे से देना आता है। मेरी बहादुरी पर माना, मेरे देश के नेता सवाल उठाते हैं, सत्ता के लोभी 65, 71, कारगिल के शौर्य को भूल जाते है। मैं डरता नहीं हूं दुश्मन के इन बंदूक, तोप के गोलों से, मैं डरता हूं नेताओं के ताशकंद, शिमला वाले बोलों से। भूखे प्यासे रह कर भी मुझको हर वक्त देश ही याद रहता है, और सर गर्व से उठ जाता है, जब बच्चा मुझे सलाम कहता है। गर छूट मुझे मिल जाए तो,ना अजगर सरहद पर फुफकारेगा, लाहौर से लेकर कराची तक बस तिरंगा ही लहराएगा। एक सैनिक के विचार जो अपने परिवार, अपने मित्र, अपना सर्वस्व त्याग कर सरहद पर देश की रक्षा के लिए जाता है परन्तु जब देखता है सियासत और सरहद का सच तो उसके विचार कुछ इस प्रकार निकलते हैं। #भारतीयसेना #सैनिक #soldier #indianarmy #politics #पाकिस्तान_की_नापाक_हरकत #pakistan #terrorism #nojotohindi #hindiwriters