टुकड़ों में मिली ज़िन्दगी, गुमान ना मिला सब जानते थे मुझे,कोई अनजान ना मिला गुजर बसर यूं ही चलते फिरते हो जाती है इस शहर में मेरी मर्ज़ी का, मकान ना मिला अंधेरी दीवारों ने जब कैद कर रक्खा था रोशनी मिली बहुत ,रोशनदान ना मिला आंसू बहाए हैं मैने, हर बार ज़ख्मों पर ढूढता हूं, अबतक कोई निशान ना मिला तमीजदार सब अपना, ईमान बचाते गए कोई मुझ सा जाहिल, बेईमान ना मिला मेरी बेपरवाह जानशीन की वफा एसी थी तीर लग चुका था सीने मे, कमान ना मिला बोली लगाई कीमती सब ने मोहब्बत की दिल रख दिया हमने, कोई सामान ना मिला #बसेरा #वत्स #dsvatsa #vatsa #illiteratepoet #हिंदी_कोट्स_शायरी #yqhindi टुकड़ों में मिली ज़िन्दगी, गुमान ना मिला सब जानते थे मुझे,कोई अनजान ना मिला गुजर बसर यूं ही चलते फिरते हो जाती है इस शहर में मेरी मर्ज़ी का, मकान ना मिला