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बनते बनते बिगड़ गई है ज़िंदगी, कितना कमाऊं, कितना

बनते बनते बिगड़ गई है ज़िंदगी,
कितना कमाऊं, कितना खर्चा करूं इसी सोच में उलझ गई है ज़िंदगी.
आंख खुलने से लेकर आंख बंद होने तक सिर्फ़ काम काम इसी में सिमट गई है ज़िंदगी,
परिवार संभालूं या पैसे कमाऊं, इसी कशमकश में पड़ के रह गई है ज़िंदगी,,,
बनते बनते बिगड़ गई है ज़िंदगी,
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©Rama
  #बनते बनते बिगड़ गई है_@Nojoto

#बनते बनते बिगड़ गई है_@Nojoto #जानकारी

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