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समेटते समेटते खुद ही बिखर गए तलब ज़माने को कहां जो

समेटते समेटते खुद ही बिखर गए
तलब ज़माने को कहां जो हम पीछे रह गए।।

©लेखक ओझा
  #samay  खुद ही बिखर गए

#samay खुद ही बिखर गए

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