"पृथ्वीपुर" ♥️ एक गुमनाम गांव... -प्रियतम पृथ्वीपुर ब्रह्मांड के रचयिता की सबसे सुंदर और सर्वश्रेष्ठ कृति थी, ब्रह्मांड के सारे ग्रहों पर जीवन नाम मात्र था लेकिन इस पृथ्वीपुर को मानो उस परमपिता परमेश्वर ने फुर्सत के क्षणों में बनाया हो..! अनेक प्रकार के प्राणियों और इंसानों के अनुपम तालमेल के साथ खुशियों से परिपूर्ण एक जीवन था..! लेकिन कहते है ना, खुशियों को नजर लग ही जाती हैं... पृथ्वीपुर से जंगलों के कटने का काम 19 वीं सदी में ही प्रारंभ हो गया था, विकास की अंधाधुंध दौड़ में हजारों-लाखों हरे भरे वृक्षों को काट दिया गया और पृथ्वीपुर से विशाल हरे-भरे वृक्षों का एक बहुत बड़ा हिस्सा लगभग गायब हो चुका था..! उन वृक्षों के साथ ही उजड़ चुका था कहीं जानवरों का जीवन और उनका घर बार..! ईश्वर द्वारा बनाई गई सुंदर तम कृतियां दर बदर भटकने को मजबूर थी , और बेजुबान प्राणियों की आत्मा बस यही गुहार लगा रही थी कि हे ईश्वर आखिर हमसे गुनाह क्या हुआ..? इंसान टेक्नोलॉजी और स्वंय के लालच में इतना तेज गति से भागा की 19 वीं सदी कब 21वीं सदी में बदल गई उसे खुद ही यकीन ना रहा..! 21वी सदी की अंधाधुंध दौड़ और और डिब्बे रुपी मकानों में बंद होते हुए लोग, जंगलों का विनाश कर, मूक बधिर प्राणियों पर अत्याचार कर खुश होता हुआ और अपनी लालसाओं को पूरा करने के लिए मानव संघर्षशील बना हुआ था..!