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गज़ल कौन मुझको जानता ,गुरबत जो मेरे साथ थी एक छत

गज़ल

कौन मुझको जानता ,गुरबत जो मेरे साथ थी
एक छत मेरा खुला ,बेमौसम की बरसात थी

दिल के साथ एक शमां, हमने जलाया रात भर
मै और मेरी तन्हाई की ,खामोश मुलाकात थी

उसके करीब जाता क्यूँ ,हाले दिल बताता क्यूँ
कुछ बात उसमें थी मगर ,खुद्दारी की बात थी

हो गया सबसे जुदा, तो गम है किस बात का
तेरी किस्मत में कलम ,कागज और दवात थी

जिक्र मेरा उनकी जुबां पर, जाने कैसे आ गया
जी गया फिर से जो संजय ,उनकी ये सौगात थी

संजय श्रीवास्तव गुरबत
गज़ल

कौन मुझको जानता ,गुरबत जो मेरे साथ थी
एक छत मेरा खुला ,बेमौसम की बरसात थी

दिल के साथ एक शमां, हमने जलाया रात भर
मै और मेरी तन्हाई की ,खामोश मुलाकात थी

उसके करीब जाता क्यूँ ,हाले दिल बताता क्यूँ
कुछ बात उसमें थी मगर ,खुद्दारी की बात थी

हो गया सबसे जुदा, तो गम है किस बात का
तेरी किस्मत में कलम ,कागज और दवात थी

जिक्र मेरा उनकी जुबां पर, जाने कैसे आ गया
जी गया फिर से जो संजय ,उनकी ये सौगात थी

संजय श्रीवास्तव गुरबत