गांव के घर के आंगन में एक पेड़ था शीशम का मैं और पेड़ दोनों एक ही उम्र के थे मैं नापता था मेरा कद लगाकर शीशम को गले से बड़ा प्यारा था शीशम खुशी से झूम जाता था वो एक छोटा सा सपना था मेरा बड़ा होकर उसे बड़ा देखने का पर बड़ो की लड़ाइयों में बड़ा ना हो सका शीशम मार दिया गया उस को और शीशम की लकड़ियां जला दी गईं चूल्हे में फिर राख छींट दी गई सब्जियों के पौधों में सब्जियां खाई मैंने खूब मन से मेरे मन में बड़ा हुआ शीशम मेरे साथ रहता है मेरी उम्र का है शीशम ©गौरव गोरखपुरी #DryTree