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गांव के घर के आंगन में एक पेड़ था शीशम का मैं और

गांव के घर के आंगन में 
एक पेड़ था शीशम का
मैं और पेड़ 
दोनों एक ही उम्र के थे

मैं नापता था मेरा कद
लगाकर शीशम को गले से
बड़ा प्यारा था शीशम
खुशी से झूम जाता था वो
 
एक छोटा सा सपना था मेरा
बड़ा होकर उसे बड़ा देखने का
पर बड़ो की लड़ाइयों में
बड़ा ना हो सका शीशम
मार दिया गया  उस को

और शीशम की लकड़ियां 
जला दी गईं चूल्हे में
फिर राख छींट दी गई 
सब्जियों के पौधों में

सब्जियां खाई मैंने खूब मन से
मेरे मन में बड़ा हुआ शीशम 
मेरे साथ रहता है
मेरी उम्र का है शीशम

©गौरव गोरखपुरी #DryTree
गांव के घर के आंगन में 
एक पेड़ था शीशम का
मैं और पेड़ 
दोनों एक ही उम्र के थे

मैं नापता था मेरा कद
लगाकर शीशम को गले से
बड़ा प्यारा था शीशम
खुशी से झूम जाता था वो
 
एक छोटा सा सपना था मेरा
बड़ा होकर उसे बड़ा देखने का
पर बड़ो की लड़ाइयों में
बड़ा ना हो सका शीशम
मार दिया गया  उस को

और शीशम की लकड़ियां 
जला दी गईं चूल्हे में
फिर राख छींट दी गई 
सब्जियों के पौधों में

सब्जियां खाई मैंने खूब मन से
मेरे मन में बड़ा हुआ शीशम 
मेरे साथ रहता है
मेरी उम्र का है शीशम

©गौरव गोरखपुरी #DryTree