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आज फिर तबीयत घबरा रही थी । सोचा चाय पी लूँ तो,,, म

आज फिर तबीयत घबरा रही थी । सोचा चाय पी लूँ तो,,,
मैंने कानों में हेड फोन ठूसे और मोबाइल पे अपना पसंदीदा गाना लगया ,,,,

मेहरी बर्तन माझं के गई थी, सो बर्तन बरामदें में धूप सेक रहे थे ।

मैंने उनके आराम में ख़लल डाला और चाय का हत्था उठा उठाया ,,,,

छन्नी जो बेचारी  भारी बर्तनों के नीचे दबी थी, बेचारी का मुंह टेड़ा हो गया था ।

मेरे हाथों आते ही खिल उठी उसका ऐठा बदन वापिस सीधा हो  गया,,,,

छन्नी से आवाज़ आई ! "जीवन्दा रे  भरावा" ! मेरे घुटते दम को बचा लिया ।

 हत्था गैस पे रख्खा पानी डाला और आग लगा दी के जल जाय घबराहट, पत्ती, शक़्कर और दूध को मिला दिया,,,,

आग की गर्मी ने तीनों को मिला के एक बना दिया तीनों की अब ख़ुद की कोई पहचान न थी ।

आग ने तीनों को मार के उनकी लाशों पे पत्ती से जो रंग बह रहा था पोत दिया ,,,,

उबाले -उबाले - उबाले से सारा अहम भाप बनकर उड़ गया कितनों की कुर्बानी से एक कुछ बन पाया ।

मैंने प्याला उठाया उस पे छन्नी रख दी और हत्थे को खाली करने लगा ही था के   ,,,,
     
    जो छन्नी मुझे कुछ देर पहले दुआयें दे रही थी तिलमिला उठी गरम - गरम चाय ने तड़पा दिया बेचारी को ।

    उसके आँसू चाय में घुल के छन गए शायद एक दो छाले भी पड़े थे, पर चाय की मार ने फोड़ दिए ,,,,

 चाय की पहली चुस्की से मेरे ज़हन में उमड़ा ख़्याल के मैं अभी धूप सेक रहा हूँ ।
    
    जब किसी को मेरे वजूद से काम होगा तो इस्तेमाल करेगा ,,,,,
  
   तन्हाई के मज़े ले  "सतिन्दर" फिर तुझे भी आग लगा दी जाएगी ? या के उबाला जाएगा ?

©️✍️ सतिन्दर 
12.03.18 #सतिन्दर #नज़्म #मेरावजूद
आज फिर तबीयत घबरा रही थी । सोचा चाय पी लूँ तो,,,
मैंने कानों में हेड फोन ठूसे और मोबाइल पे अपना पसंदीदा गाना लगया ,,,,

मेहरी बर्तन माझं के गई थी, सो बर्तन बरामदें में धूप सेक रहे थे ।

मैंने उनके आराम में ख़लल डाला और चाय का हत्था उठा उठाया ,,,,

छन्नी जो बेचारी  भारी बर्तनों के नीचे दबी थी, बेचारी का मुंह टेड़ा हो गया था ।

मेरे हाथों आते ही खिल उठी उसका ऐठा बदन वापिस सीधा हो  गया,,,,

छन्नी से आवाज़ आई ! "जीवन्दा रे  भरावा" ! मेरे घुटते दम को बचा लिया ।

 हत्था गैस पे रख्खा पानी डाला और आग लगा दी के जल जाय घबराहट, पत्ती, शक़्कर और दूध को मिला दिया,,,,

आग की गर्मी ने तीनों को मिला के एक बना दिया तीनों की अब ख़ुद की कोई पहचान न थी ।

आग ने तीनों को मार के उनकी लाशों पे पत्ती से जो रंग बह रहा था पोत दिया ,,,,

उबाले -उबाले - उबाले से सारा अहम भाप बनकर उड़ गया कितनों की कुर्बानी से एक कुछ बन पाया ।

मैंने प्याला उठाया उस पे छन्नी रख दी और हत्थे को खाली करने लगा ही था के   ,,,,
     
    जो छन्नी मुझे कुछ देर पहले दुआयें दे रही थी तिलमिला उठी गरम - गरम चाय ने तड़पा दिया बेचारी को ।

    उसके आँसू चाय में घुल के छन गए शायद एक दो छाले भी पड़े थे, पर चाय की मार ने फोड़ दिए ,,,,

 चाय की पहली चुस्की से मेरे ज़हन में उमड़ा ख़्याल के मैं अभी धूप सेक रहा हूँ ।
    
    जब किसी को मेरे वजूद से काम होगा तो इस्तेमाल करेगा ,,,,,
  
   तन्हाई के मज़े ले  "सतिन्दर" फिर तुझे भी आग लगा दी जाएगी ? या के उबाला जाएगा ?

©️✍️ सतिन्दर 
12.03.18 #सतिन्दर #नज़्म #मेरावजूद