उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है? दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें, सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए-अहले-महफ़िल, चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली, यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे न रहे। - भगत सिंह जफ़ा - अत्याचार, दहर - समय, चर्ख - आसमान, फानी - जिंदगी #bhagatsingh #shaheeddiwas #penned by Shaheed-e-azam Bhagat Singh #martyr #freedomfighter #yqdidi #yqbaba