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मैं और मेरी व्यथित सी कविता कभी उन्मुक्त, कभी लोभी

मैं और मेरी व्यथित सी कविता
कभी उन्मुक्त,
कभी लोभी स्वभाव सी
कभी सिमटे हकीकत में
कभी रूहानी ख्वाब सी
अपनी व्यथा के संकोच से मुक्त 
जीवन तारने वाली
सदा बोले हक के खातिर
कभी ना हारने वाली
उसका स्पर्श निश्चल
 मन को हर्षित कर देने वाला
जले तो अंधकार मिटाने के खातिर
स्वभाव सबकी पीड़ा मिटाने वाला
विस्तृत है इसकी संवेदनाओं का दर्पण
 कर देती स्वयं को,
 इस बोझिल मन को अर्पण
निस्वार्थ ही बह उठती 
लेकर एक नई जिजीविषा
कभी एक गुजरा लम्हा,
तो कभी ख्याल भर है
मैं और मेरी व्यथित सी कविता..।

©Kavita Bhardwaj #alone #विश्व कविता दिवस
मैं और मेरी व्यथित सी कविता
कभी उन्मुक्त,
कभी लोभी स्वभाव सी
कभी सिमटे हकीकत में
कभी रूहानी ख्वाब सी
अपनी व्यथा के संकोच से मुक्त 
जीवन तारने वाली
सदा बोले हक के खातिर
कभी ना हारने वाली
उसका स्पर्श निश्चल
 मन को हर्षित कर देने वाला
जले तो अंधकार मिटाने के खातिर
स्वभाव सबकी पीड़ा मिटाने वाला
विस्तृत है इसकी संवेदनाओं का दर्पण
 कर देती स्वयं को,
 इस बोझिल मन को अर्पण
निस्वार्थ ही बह उठती 
लेकर एक नई जिजीविषा
कभी एक गुजरा लम्हा,
तो कभी ख्याल भर है
मैं और मेरी व्यथित सी कविता..।

©Kavita Bhardwaj #alone #विश्व कविता दिवस